धूप में साएबान दे मुझ को नीम-मुर्दा हूँ जान दे मुझ को शहर जो कल था आज है मक़्तल कैसे कोई अमान दे मुझ को फ़ित्ना-परवर जहाँ से हूँ बेज़ार इक नया आसमान दे मुझ को जिन की ता'बीर हों सुलगते सराब तू न ऐसे कमान दे मुझ को ये दरिंदों का है घना जंगल कोई ऊँचा मचान दे मुझ को इल्म-ओ-फ़न से नवाज़ कर मालिक इक नई आन-बान दे मुझ को हो हुकूमत जहाँ मोहब्बत की कोई ऐसा जहान दे मुझ को तुझ को 'शहज़र' से गर मोहब्बत है प्यार का इम्तिहान दे मुझ को