दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं हम क़फ़स में भी तिरा प्यार उठा लाए हैं कैसे छीनेंगे भला हम से मोहब्बत तेरी हम तिरे कूचा-ओ-बाज़ार उठा लाए हैं लाख वीरान सही गोशा-ए-ज़िंदाँ लेकिन हम तो तेरे लब-ओ-रुख़्सार उठा लाए हैं ज़ंग-आलूद पड़े थे तिरी ग़फ़लत के सबब हम वही दर्द के हथियार उठा लाए हैं हम से बाँटी न गईं बच्चों में ख़ुशियाँ अब के ईद के दिन रसन-ओ-दार उठा लाए हैं हुस्न-ए-यूसुफ़ तिरी हुर्मत को बचाने के लिए हम यहाँ मिस्र का बाज़ार उठा लाए हैं सुर्ख़-रूई की नुमाइश थी सर-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिरे क़ातिल मिरी दस्तार उठा लाए हैं मैं तो इक उम्र से ख़ामोश पड़ा था 'सफ़दर' मेरे दुश्मन मिरा पिंदार उठा लाए हैं