इश्क़ का एक घर हमारा है बाक़ी सारा-जहाँ तुम्हारा है उस से माँगो जो सब को देता है मुफ़लिसों का वही सहारा है एक काँटा भी छू नहीं सकते यूँ तो सारा चमन हमारा है ज़िंदगी से हिसाब कर लेते हम को एहसास बस तुम्हारा है मेरे हमराह जब नहीं हो तुम मुझ को जीना नहीं गवारा है मुझ को घेरा है जब मसाइब ने मेरे दिल ने तुम्हें पुकारा है