दीदनी अब सफ़र-ए-ज़ीस्त का मंज़र होगा जिस ने लूटा सर-ए-बाज़ार वो रहबर होगा हाल-ए-दिल कह के हुए और गिरफ़्तार-ए-अलम हम न कहते थे कि यूँ दर्द फ़ुज़ूँ-तर होगा जीते-जी हम से कभी हर्फ़-ए-वफ़ा कह डालो फिर ये होगा भी जो एहसान तो किस पर होगा तू मिरी जुरअत-ए-गुफ़्तार पर हैराँ क्यूँ है ये तमाशा तिरी सरकार में अक्सर होगा उन की आँखों में चमकते हुए तारे देखे अब तो नासेह भी पशेमान बराबर होगा हम भी अब 'अर्श' नया बाब-ए-वफ़ा खोलेंगे शहपर-ए-शौक़ मह-ओ-मेहर का हम-सर होगा