दिल ख़ूँ है दिल का हाल रक़म हो तो किस तरह दिल से क़लम का फ़ासला कम हो तो किस तरह दिल है कहीं दिमाग़ कहीं और हम कहीं शीराज़ा-ए-हयात बहम हो तो किस तरह क्यूँ कहें कि दर्द नहीं हासिल-ए-हयात पेश-ए-नज़र जो है वो अदम हो तो किस तरह दिल से ज़बाँ ज़बाँ से छनी ताक़त-ए-सुख़न माइल इधर मिज़ाज-ए-सनम हो तो किस तरह दिलकश बहुत है तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का मशवरा ख़ुद पर मगर ये तुर्फ़ा-सितम हो तो किस तरह मैं और मेरे गर्द ये तन्हाई-ए-सक़र ऐ दिल इलाज-ए-सोज़-ए-अलम हो तो किस तरह क्यूँ ज़िद है शहर-ए-यार को ऐ 'अर्श' इस क़दर ये सर कि वक़्फ़-ए-दार है ख़म हो तो किस तरह