दिखाई दे रहा है जो सुनाई क्यों नहीं देता सुनाई दे रहा है जो दिखाई क्यों नहीं देता जुदा हो कर भी वो मुझ को जुदाई क्यों नहीं देता वो अपनी क़ैद से मुझ को रिहाई क्यों नहीं देता ख़बर मेरी ख़ुशी की सुन के जो मायूस बैठा है वो मेरा है तो फिर मुझ को बधाई क्यों नहीं देता मुझे सब लोग कहते हैं बुरा कहता है वो मुझ को अगर ये झूट है तो फिर सफ़ाई क्यों नहीं देता मोहब्बत के लिखूँ नग़्मे मैं जिस से दिल के सफ़्हों पर क़लम को ऐ ख़ुदा वो रौशनाई क्यों नहीं देता सुलगती दोपहर को भी जो बारिश में भिगोता है वो जलते जून से दिल को जुलाई क्यों नहीं देता अंधेरा छा गया है क्यों 'किरन' हर-सू फ़ज़ाओं में ज़िया में भी तिरी हम को सुझाई क्यों नहीं देता