दिखावा ही करना है तो फिर बड़ा कर तू शाइ'र नहीं ख़ुद को आशिक़ कहा कर यूँ शाख़ों की सौतन खड़ी मत हुआ कर शजर की कमर से कमर तू लगा कर बदन से उछल कर निकल आएगी रूह मिरे ख़्वाब में ग़ैर को मत छुआ कर बहुत देर कर दी ये कहने में मैं ने ज़रा तो सुनो मुझ को इतना सुना कर जिसे देखिए ख़ाक हो जाएगा वो नज़र में 'अनन्त' अश्क हैं कुल मिला कर