दिल आइना है जौहर-ए-अक्स रू है यूँ ही तुझ से मैं हूँ यूँ ही मुझ में तू है अगर गुल है तू जान-ए-बुलबुल भी तू है तू हर रंग में रंग तू हर बू में बू है मिरी ख़ाक अश्क-ए-नदामत से तर है तयम्मुम भी करिए तो हुक्म-ए-वुज़ू है बजा लन-तरानी है ख़ामोश हैं हम जो उठ जाए पर्दा तो फिर गुफ़्तुगू है तिरी ज़ुल्फ़-ए-पुरख़म का दीवाना हूँ मैं न ज़ंजीर-ए-पा है न तौक़-ए-गुलू है तसव्वुर में अबरू के जो मर गया हूँ पस-ए-मर्ग काबा मिरे रू-ब-रू है गरेबान-ए-सद-चाक है दामन-ए-गुल न पैवंद की जा न कार-ए-रफ़ू है तिरे मुँह को देखूँ तिरे साथ सोऊँ ये ही हसरत-ए-दिल ये ही आरज़ू है मैं दौरान-ए-सर से जो सर फोड़ता हूँ न मय है न साक़ी न जाम-ए-सुबू है छुरी क्या है तलवार भी मार क़ातिल क़बाए-बदन को भी शौक़-ए-रफ़ू है नहाता है ग़ैरों के हमराह क़ातिल मिरे आब-ए-शमशीर ही ता-गुलू है तिरे जल्वे से है दिल-ए-'अर्श' रौशन जो वो सुब्ह-ए-सादिक़ तो ख़ुर्शीद तू है