दिल और दिल में याद किसी ख़ुश-ख़िराम की सीने में हश्र ले के चले हैं जहाँ से हम अब चारासाज़ी-ए-दिल बीमार क्या करें ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तुझे लाएँ कहाँ से हम अल्लाह रक्खे हम को सहारा है ज़ोफ़ का बैठे तो फिर उठेंगे न इस आस्ताँ से हम क्या क्या दिए फ़रेब ग़म-ए-इश्क़-ए-यार ने दिल हम से बद-गुमान है और राज़-दाँ से हम