दिल बदन का शरीक-ए-हाल कहाँ हिज्र फिर हिज्र है विसाल कहाँ इश्क़ है नाम इंतिहाओं का इस समुंदर में ए'तिदाल कहाँ ऐसा नश्शा तो ज़हर में भी न था ऐ ग़म-ए-दिल तिरी मिसाल कहाँ हम को भी अपनी पाएमाली का है मगर इस क़दर मलाल कहाँ मैं नई दोस्ती के मोड़ पे था आ गया है तिरा ख़याल कहाँ दिल कि ख़ुश-फ़हम था सो है वर्ना तेरे मिलने का एहतिमाल कहाँ वस्ल ओ हिज्राँ हैं और दुनियाएँ इन ज़मानों में माह-ओ-साल कहाँ तुझ को देखा तो लोग हैराँ हैं आ गया शहर में ग़ज़ाल कहाँ तुझ पे लिक्खी तो सज गई है ग़ज़ल आ मिला ख़्वाब से ख़याल कहाँ अब तो शह मात हो रही है 'फ़राज़' अब बचाव की कोई चाल कहाँ