तेरे दर्शन सदा नहीं होते मो'जिज़े बारहा नहीं होते आओ तो आहटें नहीं होतीं जाओ तो नक़्श-ए-पा नहीं होते तुम से मिलने ज़रूर आऊँगा फ़र्ज़ मुझ से क़ज़ा नहीं होते टूट जाते हैं हब्स-मौसम में वो दरीचे जो वा नहीं होते हाथ ख़ाली उठाते हैं 'शाहिद' लब पे हर्फ़-ए-दुआ नहीं होते