दिल बहक जाता है बरसात के साथ हम बिगड़ जाते हैं हालात के साथ वो मुक़द्दस है सहीफ़े की तरह हिफ़्ज़ हो जाता है आयात के साथ कितने रौशन हैं दर-ओ-बाम-ए-ख़याल हम चमकने लगे ज़र्रात के साथ दश्त-ए-जाँ और तिरे दर्द की लौ कौन गुज़रा है मिरी रात के साथ ये ग़नीमत है कि हम ज़िंदा हैं लोग मर जाते हैं आदात के साथ कोई तदबीर फ़लक की न चली हम जवाँ हो गए आफ़ात के साथ मस्लहत सच नहीं कहने देती लोग बिकते हैं करामात के साथ एक रग़बत है मय-ए-नाब से 'क़ैस' इक तअ'ल्लुक़ है ख़राबात के साथ