दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए है ख़ुदा का घर यही लेकिन सफ़ाई चाहिए दाद-ए-हक़ देखा तो मुतलक़ नीं है मुहताज-ए-सवाल है वहाँ बख़्शिश ही बख़्शिश बे-नवाई चाहिए यार की ना-मेहरबानी पर न कीजे कुछ ख़याल जो हैं महबूब उन के तईं बे-ए'तिनाई चाहिए अपने ही घर में ख़ुदाई है जो कोई समझे 'हुज़ूर' हाँ मगर क़ैद-ए-ख़ुदी से टुक रिहाई चाहिए