मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले कि जैसे अजनबी कोई इक अजनबी से मिले क़दम क़दम पे ख़ुलूस-ए-वफ़ा का ज़िक्र किया अदू मिले भी तो किस हुस्न-ए-सादगी से मिले सितम करो भी तो अंदाज़-ए-मुंसिफ़ी से करो कोई सलीक़ा तो उन्वान-ए-दोस्ती से मिले तिरी तलाश में निकले थे तेरे दीवाने हर एक मोड़ पे ख़ुद अपनी ज़िंदगी से मिले वो लोग अपनी ही ज़ंजीर-ए-पा के क़ैदी हैं जिन्हें निशान-ए-सफ़र भी तिरी गली से मिले चलो कि तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की बात ख़त्म हुई न तुम ख़ुशी से मिले हो न हम ख़ुशी से मिले