दिल बिछड़ कर जो चला उस बुत-ए-मग़रूर तलक देखता मैं भी गया उस के तईं दूर तलक जान जावे कि न जावे रहे सर या न रहे छोड़ने के नहीं हम तुझ को तो मक़्दूर तलक अब नहीं वक़्त तग़ाफ़ुल का सुन ऐ यार-ए-अज़ीज़ पहुँचियो जल्द ज़रा इस दिल-ए-रंजूर तलक हम भी तब तक हैं कि याँ जल्वा है जब तक तेरा हस्ती-ए-साया भी सच पूछो तो है नूर तलक ज़ख़्म-ए-दिल इश्क़ के घर का तो दर-ए-दौलत है भेज मरहम को न हमदम मिरे नासूर तलक क़ासिद-ओ-नामा-ओ-पैग़ाम की मत कह कि सबा अब तो वाँ से नहीं आती दिल-ए-महजूर तलक मर गए दिन ही को हम हिज्र में सद-शुक्र 'हसन' काम पहुँचा न हमारा शब-ए-दीजूर तलक