दिल बुतों से न लगाना हरगिज़ उन के फंदे में न आना हरगिज़ दिल तुझे अपनी है गर जान अज़ीज़ कू-ए-क़ातिल में न जाना हरगिज़ माँग बैठा वो तो दिल देने में नहीं बनने का बहाना हरगिज़ अंदलीबान-ए-चमन को सय्याद फ़स्ल-ए-गुल में न सताना हरगिज़ शिकवा-ए-यार ज़बाँ पर अपनी दिल ख़बर-दार न लाना हरगिज़ हदफ़-ए-तीर निगाह-ए-क़ातिल मुर्ग़-ए-दिल को न बनाना हरगिज़ इस से वाबस्ता हैं दिल लाखों के ज़ुल्फ़ में खींचो न शाना हरगिज़ रहने देता नहीं इंसान को याँ इक वतीरे पे ज़माना हरगिज़ इंक़लाब इस में है दम दम ऐ दिल इस का अफ़्सोस न खाना हरगिज़ गर ख़ुदा दे तुझे तौफ़ीक़ ऐ 'ऐश' दिल किसी का न दुखाना हरगिज़