दिल लगाएँगे हम उस शोख़ परी-ज़ाद से अब बदले सब लेवेंगे चर्ख़-ए-सितम-ईजाद से अब तंग उश्शाक़ हैं ज़ालिम तिरी बेदाद से अब उन के काँपे है फ़लक नाला-ओ-फ़रियाद से अब बर्क़-ओ-सीमाब को दा'वे थे तड़पने के बड़े हों मुक़ाबिल कहो आ कर दिल-ए-बेताब से अब तोड़ दे जब कमर-ए-शाख़ समर ही उस का क्या तवक़्क़ो रखे अपनी कोई औलाद से अब फँस चुकी दाम में सय्याद के जब बुलबुल-ए-ज़ार रोना क्या फ़ाएदा बे-रहमी-ए-सय्याद से अब दिल लिया जान भी मौजूद है लो बिस्मिल्लाह मुझ को चारा नहीं है आप के इरशाद से अब 'ऐश' आसूदगी दारैन की हो तुझ को नसीब है दुआ ये ही मिरी ख़ालिक़-ए-जव्वाद से अब