दिल चाक करो हो न जिगर चाक करो हो तुम फिर भी लहू-रंग ये पोशाक करो हो अब तुम से सँभाले नहीं जाते ये ख़म-ओ-पेच क्या फ़ाएदा ज़ुल्फ़ों से जो पेचाक करो हो पैरों की धमक से तो न उल्टी ये ज़मीं भी क्या ज़ेर-ए-क़दम सरहद-ए-अफ़्लाक करो हो ये जिस्म भी कल मुंसिफ़ी चाहेगा यक़ीनन तुम राख करो हो या इसे ख़ाक करो हो बिक जाओगे इक दिन उसी मासूम के हाथों तुम जिस किसी मासूम को चालाक करो हो हैं ज़ाग़-ओ-ज़ग़न ताक में नज़रों को गड़ाए कब किश्त-ए-बदन तुम ख़स-ओ-ख़ाशाक करो हो 'ख़ुसरव' कभी ख़ुद इस का मज़ा तुम भी तो चक्खो जो नोक-ए-ज़बाँ ख़ंजर-ए-सफ़्फ़ाक करो हो