दिल गया दिल से दिल की बात गई वो गए लज़्ज़त-ए-हयात गई ग़ुंचे अफ़्सुर्दा फूल पज़मुर्दा फ़स्ल-ए-गुल जैसे उन के सात गई उन के जल्वे निगाह में न रहे रौनक़-ए-बज़्म-ए-काएनात गई दिल-ए-नादाँ को लाख समझाया कुछ न समझा ये सारी रात गई साया-ए-ज़ुल्फ़ में जो गुज़री थी कौन जाने किधर वो रात गई उठ गया पर्दा-ए-अजल जिस दम इक हयात आई इक हयात गई 'शौक़' बज़्म-ए-जहाँ की रौनक़ है ये गया रूह-ए-काएनात गई