दिल है हरीफ़ परतव-ए-हुस्न-ए-शबाब का ज़र्रा बना हुआ है जवाब आफ़्ताब का फिर ज़िक्र आ गया है अज़ाब-ओ-सवाब का लाना उठा के वो मिरा साग़र शराब का हर वहम बे-सबात है हर मुद्दआ' ख़याल या'नी ये ज़िंदगी नहीं आलम है ख़्वाब का मूसा समझ रहे थे तजल्ली की जिस को मौज गोशा सरक गया था किसी की नक़ाब का वो हैं कि चाक कर भी चुके अर्ज़-ए-शौक़ को मैं हूँ कि मुंतज़िर हूँ अभी तक जवाब का 'मख़मूर' कोई भी नज़र आता नहीं हसीं अल्लह रे हौसला निगह-ए-बारयाब का