दिल को हुस्न-ए-ग़म-ए-जानाँ से फ़रोज़ाँ कर दें कुफ़्र में रंग भरें ऐसा कि ईमाँ कर दें ये हक़ीक़त है कि ज़िद पर अगर आ जाएँ तो हम अपनी सूरत से तिरी शक्ल नुमायाँ कर दें जाने वाले ब-खु़शी जाएँ मगर अर्ज़ ये है चलते चलते मिरे जीने के भी सामाँ कर दें इन्किशाफ़ात-ए-मोहब्बत में रहे क्यों उलझन लाओ शीराज़ा-ए-हस्ती को परेशाँ कर दें फिर मिरे हाल पे सरकार तबस्सुम फ़रमाएँ फिर मिरे दिल को ज़रा बर्क़-बदामाँ कर दें क्यों किसी और का मम्नून-ए-करम हो 'मख़मूर' आप ने दर्द दिया आप ही दरमाँ कर दें