दिल है ख़मोश महशर-ए-अरमाँ लिए हुए क़तरे का है सुकून भी तूफ़ाँ लिए हुए ईमान कुफ़्र कुफ़्र है ईमाँ लिए हुए नैरंगियाँ हैं गर्दिश-ए-दौराँ लिए हुए होश-ए-जुनूँ है जल्वा-ए-उर्यां लिए हुए दामन का चाक ता-ब-गरेबाँ लिए हुए दर्द-ए-वफ़ा पे क़ीमत-ए-दरमाँ लिए हुए दिल हों दिए हुए ग़म-ए-जानाँ लिए हुए परवाना-वार जाता हूँ फिर बज़्म-ए-नाज़नीन सोज़-ए-वफ़ा की शम-ए-फ़रोज़ाँ लिए हुए आज़ाद-ए-क़ैद-ओ-बंद है गुल-कारी-ए-ख़याल बैठे हैं हम क़फ़स में गुलिस्ताँ लिए हुए रुस्वा न कर दें तुझ को तिरी बे-क़रारियाँ अपने को इक ज़रा दिल-ए-नादाँ लिए हुए सर में जुनूँ का जोश है क्यूँकर उठें न पाँव हर आबले में ख़ार-ए-मुग़ीलाँ लिए हुए हमदम न पूछ 'वासिफ़'-ए-ख़स्ता से राज़-ए-दिल ख़ामोश क्यों है तब्अ'-ए-ग़ज़ल-ख़्वाँ लिए हुए