दिल है कि ग़म-ए-दिल का अज़ा-दार नहीं है जाँ है कि सम-ए-ज़ीस्त से बेज़ार नहीं है या क़द कोई उठती हुई दीवार नहीं है या सर कोई सौदा का सज़ा-वार नहीं है अल्फ़ाज़ के रंगों ने जो तस्वीर बनाई ये तो मिरे जज़्बात का इज़हार नहीं है नज़दीक भी आ झाँक के दिल में भी ज़रा देख मल्बूस ही इंसान का मेआ'र नहीं है निकले हो कड़ी धूप में जिस राह पे 'आली' उस रह में कहीं साया-ए-अश्जार नहीं है