दिल है क्यों गिर्या-ए-बे-अश्क से पुर-नूर बहुत तुम बहुत पास हो या ख़ुद से हैं हम दूर बहुत जल्वा-ए-हुस्न से दिल क्या रहे मामूर बहुत मौज साहिल के कभी पास कभी दूर बहुत नाम इसी फ़र्क़ का है कशमकश-ए-ग़म शायद तुम करम करते हो कम-कम हमें मंज़ूर बहुत इस्तिताअत है जिन्हें उन को कुछ एहसास नहीं जिन का एहसास है ज़िंदा वो हैं मजबूर बहुत मर्ग-ए-बे-फ़ासला है बा-ख़बरी का जीना अपनी ग़फ़्लत से है जो कोई है मसरूर बहुत कब से हूँ हम-क़दम-ए-वक़्त-ए-गुरेज़ांँ लेकिन दूर है मंज़िल-ए-मक़्सूद ब-दस्तूर बहुत सिर्फ़ आलाम से ही दिल नहीं होता ग़मगीं बाज़ ख़ुशियाँ भी बना देती हैं रंजूर बहुत क्या न करती रही दुनिया हमें अपनाने को कम-दिमाग़ी से रहे कुछ हमी मग़रूर बहुत दिल में रख कर तुम्हें गुमनाम के गुमनाम हैं हम तूर इक बर्क़-ए-तजल्ली से है मशहूर बहुत कहीं हँसते हुए चेहरों से न धोका खाना दिल टटोलोगे तो मिल जाएँगे नासूर बहुत ज़िंदगी वक़्त का ख़ुद सब से बड़ा हादिसा है जिस को देखो वो है हालात से मजबूर बहुत 'शौक़' क्या जल्वा-ए-बे-पर्दा की ख़्वाहिश कीजे होश उड़ाने को है इक जल्वा-ए-मस्तूर बहुत