दरिया-ए-नूरू-ओ-रंग है निकहत है ज़िंदगी पैग़म्बर-ए-ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत है ज़िंदगी चाहो तो हर क़दम पे तुम्हें मंज़िलें मिलें सोचो तो हौसला है शुजाअ'त है ज़िंदगी ये इम्तियाज़-ओ-फ़र्क़ ये नफ़रत हिक़ारतें और मज़हब-ए-वफ़ा की शरीअ'त है ज़िंदगी मेरी नज़र नहीं निगह-ए-शैख़-ओ-बरहमन पस्ती नहीं है अर्श की रिफ़अत है ज़िंदगी फिर शाम-ए-हिज्र आएगी सैल-ए-अलम लिए फिर रो के हम कहेंगे कि फ़ुर्क़त है ज़िंदगी गलियों की ख़ाक छानी तो मोती मिले हैं ये कह के हम न सोए कि राहत है ज़िंदगी 'राजे' जो कुछ भी फ़ैसला अहल-ए-ख़िरद करें मेरे लिए तो सिर्फ़ मोहब्बत है ज़िंदगी