दिल है तो मगर दिल में वो जज़्बात नहीं अब इक साज़ है जो हामिल-ए-नग़्मात नहीं अब वो सिलसिला-ए-हर्फ़-ओ-हिकायात नहीं अब मिलते हैं मगर लुत्फ़-ए-मुलाक़ात नहीं अब दर-पर्दा इशारात-ओ-किनायात नहीं अब या'नी नज़र-अफ़रोज़ हिजाबात नहीं अब मिलने को तो मिलती हैं निगाहों से निगाहें वो लुत्फ़-ए-सवालात-ओ-जवाबात नहीं अब अब शाम-ओ-सहर में नहीं बे-ताबी-ए-फ़ितरत आशोब-ए-तमन्ना लिए दिन-रात नहीं अब सहबा-ए-तरब कौन पिए कौन पिलाए वो रिंद वो साक़ी वो ख़राबात नहीं अब सब उठ गए ख़ुश-रंग हिजाबात नज़र से दुनिया मिरी नज़रों में तिलिस्मात नहीं अब