भुला देने वालों की याद आ रही है भुलाए हुए ख़्वाब दिखला रही है अज़िय्यत में राहत ख़लिश में सुकूँ है तबीअत अजब लज़्ज़तें पा रही है तसव्वुर में वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं बसी है मोअ'त्तर मोअ'त्तर सबा आ रही है मिरे वास्ते ग़ुंचा-ए-जाँ-फ़ज़ा में तबस्सुम की शोख़ी भरी जा रही है बहक कर भटक कर निगाहें बचा कर मिरे दिल की जानिब नज़र आ रही है ज़बाँ के तवस्सुत से आज़ाद हो कर हदीस-ए-तमन्ना कही जा रही है ये मेरी तमन्ना की गुल-कारियाँ हैं कि फूलों से दुनिया पटी जा रही है जवानी में उल्फ़त की हल्क़ा-ब-गोशी ये रस्म-ए-कुहन तो चली जा रही है मोहब्बत को दीवानगी जानते हैं मोहब्बत मगर फिर भी की जा रही है