दिल जो बैठा तो इज़्तिराब उठा बज़्म-ए-जानाँ अब इंक़लाब उठा आज वाइज़ से बात करनी है साक़िया चल ज़रा शराब उठा क़ाबिलिय्यत का रो'ब डालने को कोई मोटी सी इक किताब उठा राह चलते पड़े भी मिलते हैं खुली आँखों से कोई ख़्वाब उठा रंज उठाने की उन से ठहरी थी ये कहाँ से दिल-ए-ख़राब उठा क्या चराग़ों को ले के बैठा है आ मिरे साथ आफ़्ताब उठा ‘ख़िज़्र’-ए-मय-नोश मै-कदा में झूट चल क़सम खा उठा शराब उठा