चलना उन्हें गवारा नहीं ख़ाक-दान पर रख दे कोई उठा के ज़मीन आसमान पर जैसे जहाँ में कोई गुनहगार ही नहीं बस इक हमारा नाम है सब की ज़बान पर उस को भी कोई उस की तरह से न धोका दे आए न ऐसा वक़्त मिरे मेहरबान पर हम तो बस इक निगाह में पहचान जाते हैं चलते हैं खोटे सिक्के कहाँ हर दुकान पर ख़ैरात अपने हुस्न की सदक़ा जमाल का साइल खड़ा हुआ है तुम्हारे मकान पर की फ़िक्र जिस ने जान की मारा गया वही वो बच गया जो खेल गया अपनी जान पर तूफ़ाँ में 'ख़िज़्र' नाव है तो कर ख़ुदा को याद इतना भरोसा अच्छा नहीं बादबान पर