दिल का अहवाल ज़माने पे अयाँ हो सकता लफ़्ज़ ऐ काश तमन्ना की ज़बाँ हो सकता ये समझते ही नहीं दर्द का बाइ'स क्या है मेरा दिल काश दिल-ए-चारा-गराँ हो सकता देख सकता किसी ख़ंजर की लपक का मंज़र कोई ग़म-ख़्वार क़रीब-ए-रग-ए-जाँ हो सकता चाँद की मशअ'ल-ए-बे-कार बुझा दी जाती रात पर रात का शिद्दत से गुमाँ हो सकता कम न होती जो तपिश दर्द के अँगारों की रूह में हौसला-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ हो सकता शे'र बनने से ख़यालात बिखर जाते हैं काश 'जमशेद' ये दुख यूँही बयाँ हो सकता