दिल का दफ़्तर जला के देखा है ख़ून अपना बहा के देख है एक रत्ती भी नहीं वो बा-ज़ौक़ शे'र हम ने सुना के देखा है कारगर कुछ भी नहीं हो पाया अपना सब कुछ लुटा के देखा है उन के दिल में नहीं मिरी चाहत हाथ हम ने दबा के देखा है रौशनी फिर भी हो नहीं पाई हम ने दिल तक जला के देखा है भूलता ही नहीं उसे ये दिल हम ने 'फ़र्रुख़' भुला के देखा है