इक कली में पोशीदा कुल हयात रख दी है तितलियों की आँखों में काएनात रख दी है मैं इक आम सी औरत मेरी आज़माइश क्या मेरे सामने ला कर क्यूँ फ़ुरात रख दी है उस के इक इशारे पर दिल का फ़ैसला ठहरा मैं ने जीत हार अपनी जिस के हात रख दी है उम्र घटती जाती है फ़ासला नहीं कटता तू ने मेरी राहों में कैसी रात रख दी है मैं हूँ एक शीशागर जिस ने अपने शीशे में अक्स ही नहीं रक्खा पूरी ज़ात रख दी है अब इसे गिला कहिए या समझिए अपना-पन बात बात में हम ने अपनी बात रख दी है 'ज़हरा' हम तो अब ठहरे धड़कनों के सौदागर हर्फ़ हर्फ़ में दिल की वारदात रख दी है