दिल का सहरा क़तरा क़तरा प्यासा था मेरे उस के बीच में दरिया बहता था उस की ज़ुल्फ़ें आवारा रुत सावन की उस का चेहरा चैत चाँद का चेहरा था कितने हिज्र के मौसम आए बीत गए मैं कि तेरी याद में खोया रहता था रात गए जब चाँद हमारे घर उतरा दीवारों पे उस की याद का साया था आख़िर शहर के हंगामों में डूब गया सूरज तेरे हिज्र का तेरे जैसा था मन-बस्ती में मेला उजड़े चेहरों का इस मेले में हर चेहरा ही मेरा था कौन 'रज़ी' इन ज़र्द हवाओं से पूछे सब्ज़ रुतों में मेरा साथी कैसा था