नज़र उदास नज़ारे ख़मोश दिल बेज़ार जुनून-ए-शौक़ ये मंज़िल है या कि रहगुज़ार न जोश-ए-आतिश-ए-गुल है न ख़ौफ़-ए-बर्क़-ओ-शरर नई नई सी असीरी नई नई सी बहार ज़रा सी बात बनी इक फ़साना आख़िर-ए-कार मेरी निगाह की शोख़ी तिरी नज़र का ख़ुमार ग़म-ए-हयात के मारे अभी तो सोए हैं अभी न दे ऐ नसीम-ए-सहर नवेद-ए-बहार ग़म-ए-जहान ग़म-ए-जुस्तुजू ग़म-ए-जानाँ कहाँ कहाँ न मिला इक शिकस्ता दिल को क़रार तिरी ही याद सहारा दिए रही वर्ना कहाँ गुज़रते हैं तन्हाइयों में लैल-ओ-नहार तिरे बग़ैर अँधेरों में खो गए जल्वे तिरी नज़र से फ़रोज़ाँ थे आरज़ू के दयार न इंतिज़ार-ए-सहर अब है और न वा'दा-ए-शाम कि रह गया है ख़लाओं पे ज़िंदगी का मदार न पूछ कैसा ये आलम हुआ है वहशत में गुलों की आँच से बुझने लगे हैं दिल के शरार