दिल कभी तालिब-ए-दुआ न हुआ सबब-ए-शर्म इल्तिजा न हुआ दिल-ए-सोज़ाँ ने की न आह कभी शो'ला मिन्नत-कश-ए-हवा न हुआ दिल में दफ़्तर भरे हुए थे मगर मुँह से इक हर्फ़ भी अदा न हुआ रंग-ए-हसरत न जम सका दिल में आइना सूरत-आश्ना न हुआ रह गया कौन सा गुनह तौफ़ीक़ पूछिए सच तो हम से क्या न हुआ