न पूछो हाए किस मुश्किल से टाला अपने मेहमाँ को निकल कर आप से हम ने निकाला दिल से अरमाँ को ग़ज़ब का रंग लाई है मिरी वहशत की बेताबी कि साया भागता है मुझ से पहले ही बयाबाँ को बहुत अच्छा हुआ इक शग़्ल-ए-फ़ुर्सत मिल गया ज़ालिम तिरे शौक़-ए-तग़ाफ़ुल को मिरे ज़ौक़-ए-तन-आसाँ को जो टपका आँख से मेरी तो बस पाँव से मल डाला समझते हैं हिना वो ख़ून-ए-हसरत-हा-ए-पिन्हाँ को ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ ने 'तौफ़ीक़' ऐसा सिलसिला तोड़ा परेशाँ कर दिया मजमूआ'-ए-ख़्वाब-ए-परेशाँ को