दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा वो वलवला वो जोश वो तुग़्याँ नहीं रहा no longer worthy is my heart of being in love with her that zeal, that fervor, that tumult, now no longer appear ठंडा है गर्म-जोशी-ए-अफ़्सुर्दगी से जी कैसा असर कि नाला-ओ-अफ़्ग़ाँ नहीं रहा my heart is cold it lacks the heat of soulful agony what can result wail and lament now all are lost to me करते हैं अपने ज़ख़्म-ए-जिगर को रफ़ू हम आप कुछ भी ख़याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ नहीं रहा on my own i seek to darn the wounds upon my heart the tremor of those lashes no longer play a part दिल-सख़्तियों से आई तबीअ'त में नाज़ुकी सब्र-ओ-तहम्मुल-ए-क़लक़-ए-जाँ नहीं रहा hardships 'pon my heart have served to weaken my core patience and endurance for life's troubles are no more ग़श हैं कि बे-दिमाग़ हैं गुल-पैरहन नमत अज़-बस दिमाग़-ए-इत्र-ए-गरेबाँ नहीं रहा i am glad to be as callous as the one in floral dress no longer does the longing for her perfume prepossess आँखें न बदलें शोख़-नज़र क्यूँ के अब कि मैं मफ़्तून-ए-लुत्फ़-ए-नर्गिस-ए-फ़त्ताँ नहीं रहा say why should she not turn away her glance from me for i no longer am enamoured of the the speck within her eye नाकामियों का गाह गिला गाह शुक्र है शौक़-ए-विसाल ओ अन्दुह-ए-हिज्राँ नहीं रहा for failures i am grateful times and at times complain the joy of meeting is no more, nor is parting's pain बे-तूदा तूदा-ख़ाक सुबुक-दोश हो गए सर पर जुनून-ए-इश्क़ का एहसाँ नहीं रहा ....................................................................................... ....................................................................................... हर लहज़ा मेहर-जल्वों से हैं चश्म-पोशियाँ आईना-ज़ार दीदा-ए-हैराँ नहीं रहा ....................................................................................... ....................................................................................... फिरते हैं कैसे पर्दा-नशीनों से मुँह छुपाए रुस्वा हुए कि अब ग़म-ए-पिन्हाँ नहीं रहा i run around hiding my face from those beauties veiled i am disgraced my hidden pain to all has been revealed आसेब-ए-चश्म-ए-क़हर-ए-परी-तलअताँ नहीं ऐ उन्स इक नज़र कि मैं इंसाँ नहीं रहा ....................................................................................... ....................................................................................... बेकारी-ए-उमीद से फ़ुर्सत है रात दिन वो कारोबार-ए-हसरत-ओ-हिरमाँ नहीं रहा day and night now i am free from hope's futility the business of despair and hope no longer interests me बे-सैर-ए-दश्त-ओ-बादिया लगने लगा है जी और इस ख़राब घर में कि वीराँ नहीं रहा my heart is now at ease although the wilds i do not roam and desolation finally has left this ruined home क्या तल्ख़-कामियों ने लब-ए-ज़ख़्म सी दिए वो शोर-ए-इश्तियाक़-ए-नमक-दाँ नहीं रहा has bitterness sewed up the lips of my every wound that frenzied longing for salt bins is no longer found बे-ए'तिबार हो गए हम तर्क-ए-इश्क़ से अज़-बस कि पास-ए-वादा-ओ-पैमाँ नहीं रहा a disbeliever i became, from love, once, i forswore i have faith in troths and vows of constancy no more नींद आई है फ़साना-ए-गेसू-ओ-ज़ुल्फ़ से वहम-ओ-गुमान-ए-ख़्वाब-ए-परेशाँ नहीं रहा with tales of tresses, curls at last now sleep has come to me the fears and doubts of troubled dreams have all now ceased to be किस काम के रहे जो किसी से रहा न काम सर है मगर ग़ुरूर का सामाँ नहीं रहा when i am now estranged from everyone what use am i i do possess a head but can no longer hold it high 'मोमिन' ये लाफ़-ए-उल्फ़त-ए-तक़्वा है क्यूँ मगर दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा how is it that momin boasts that he's forsworn romance when not a face in town remains, that's worthy of a glance