दिल कहता है देखूँगा तिरा तीर-ए-नज़र तोड़ जिस तरह मुझे तोड़ा है उस तरह जिगर तोड़ क़ातिल तुझे जब हाल मिरे दिल का खुलेगा इक तीर से पहले मिरे सीने की सिपर तोड़ वो आए हैं जी भर के उन्हें देख ले तू भी अश्कों का ज़रा तार तो ऐ दीदा-ए-तर तोड़ सरसब्ज़ तो होने दे ज़रा नख़्ल-ए-तमन्ना नादाँ है अभी ख़ाम न उल्फ़त का समर तोड़ बेकार मुझे देखता है तिरछी नज़र से तीर-ए-निगह-ए-यार मिरा क़ल्ब-ओ-जिगर तोड़ पहले से अज़ाँ देने पे तोड़ी गई मिंक़ार दम वस्ल की शब आज तो ऐ मुर्ग़-ए-सहर तोड़ समझूँगा 'शफ़ीक़' अपना मैं तीर-ए-निगह-ए-यार गर एक इशारे में मिरा क़ल्ब-ओ-जिगर तोड़