दिल के अफ़्साने को अफ़्साना समझने वाले ख़ूब समझे मुझे दीवाना समझने वाले देख कर भी न कभी जान सके हुस्न का राज़ इश्क़ को इल्म से बेगाना समझने वाले आ तुझे ज़ब्त के इसराफ़ से आगाह करूँ आह को दर्द का पैमाना समझने वाले शैख़ जागीर समझता है ख़ुदाई को भी हम ख़ुदा को भी किसी का न समझने वाले क़ैस से दश्त में क्या ख़ूब मुलाक़ात रही लोग मिलते नहीं रोज़ाना समझने वाले घर को लौटे भी तो बिखरे हुए लौटे 'राहील' ख़ुद को ख़ाक-ए-रह-ए-जानाना समझने वाले