का'बा महदूद है पाबंद-ए-सनम-ख़ाना है इश्क़ हर क़ैद-ए-ख़यालात से बेगाना है किस क़दर शोख़ मिरी फ़ितरत-ए-रिंदाना है लब पे है नाम ख़ुदा हाथ में पैमाना है ख़ाक होने पे भी दामान शरर ही में रहा किस क़दर शो'ला-फ़िशाँ फ़ितरत-ए-परवाना है फ़ैसला जज़्बा-ए-वहशत है तुझी पर मौक़ूफ़ ये क़फ़स है ये गुलिस्ताँ है ये वीराना है फ़ुर्सत-ए-फ़िक्र-ओ-समाअ'त है तो सुन लो आ कर दिल की धड़कन में निहाँ दर्द का अफ़्साना है जुस्तजू-ए-हरम-ओ-दैर नहीं है 'मैकश' दिल ही का'बा है मिरा दिल ही सनम-ख़ाना है