दिल के बे-तरतीब वीराने को घर उस ने किया फिर निज़ाम-ए-ज़िंदगी ज़ेर-ओ-ज़बर उस ने किया आस के रौशन दिए रख कर फ़सील-शाम पर रात के अंधे सफ़र को बे-ख़तर उस ने किया एक उस के दम से हर मौसम हुआ रश्क-ए-बहार एक शाख़-ए-आरज़ू को बे-समर उस ने किया अन-कहे लफ़्ज़ों को बख़्शा इक नया तर्ज़-ए-कलाम अन-बहे अश्कों को फिर लाल-ओ-गुहर उस ने किया बे-क़रारी थी जिसे सुनने-सुनाने के लिए हर्फ़-ए-शौक़-ए-बे-कराँ को मुख़्तसर उस ने किया ख़्वाब में मिलना तो गोया रोज़ का मा'मूल था इस अनोखे खेल को यूँ मो'तबर उस ने किया उम्र-भर जिस को निगाहें ढूँढती फिरती रहें उम्र-भर मेरे ख़यालों में बसर उस ने किया कर रहा था वो भी तारे तोड़ कर लाने की बात बे-सबब लम्हों का जादू बे-असर उस ने किया कहकशाँ फिरती रही गलियों में किस को ढूँढती लोग कहते हैं मिरे घर तक सफ़र उस ने किया