दर्द की दीवार सर तक आ गई दिल की बीनाई नज़र तक आ गई रेत पर नक़्श-ए-क़दम को ढूँढती ज़िंदगी शाम-ओ-सहर तक आ गई रौशनी का रंग फीका पड़ गया तीरगी दीवार-ओ-दर तक आ गई सुब्ह चमकी या कोई तारा गिरा चाँदनी सी मेरे घर तक आ गई और होंगे जिन को मंज़िल मिल गई जुस्तुजू तर्क-ए-सफ़र तक आ गई बंद दरवाज़े पे खटका सा हुआ बात इतनी सी ख़बर तक आ गई रात के पिछले पहर यादों की धूप ध्यान के बूढे शजर तक आ गई उस का नाम आया तो कलियाँ खिल उठीं बात फिर शम्स-ओ-क़मर तक आ गई