दिल की मायूस तमन्नाओं को मर जाने दो दर्द को आख़िरी मंज़िल से गुज़र जाने दो मैं ने कब साग़र-ओ-सहबा से किया है इंकार नश्शा-ए-बादा-ए-हस्ती तो उतर जाने दो जिस की ऐ अहल-ए-चमन की है लहू से ता'मीर अब वो शीराज़ा-ए-गुलशन न बिखर जाने दो चार तिनकों की भी ता'मीर है कोई ता'मीर फ़स्ल-ए-गुल आएगी रख लेंगे बिखर जाने दो लज़्ज़त-ए-ग़म से तड़पने में मज़ा आता है लज़्ज़त-ए-ग़म से तबीअ'त मिरी भर जाने दो इंक़लाब आएगा कोई कि बहार आएगी ख़ाल-ओ-ख़द चेहरा-ए-गीती के निखर जाने दो हम से बदले हुए तेवर हैं ज़माने के 'सफ़ीर' उस ने देखी है हमारी भी नज़र जाने दो