दिल के वरक़-ए-सादा पे कुछ रंग उभारें ख़ूँ-गश्ता तमन्नाओं की तस्वीर उतारें शायद कोई रौज़न कोई खिड़की निकल आए सर अपना चलो वक़्त की दीवार से मारें कब तक दिल-ए-दीवाना ये बे-वजह तआ'क़ुब अब हाथ कहाँ आएँगी रम-कर्दा बहारें बरहम हुई वो महफ़िल-ए-यारान-ए-ख़ुश-औक़ात तन्हाई के लम्हात कहाँ जा के गुज़ारें आँगन की उदासी को फ़ुज़ूँ कर गईं 'मख़मूर' दीवार पे बैठी हुई चिड़ियों की क़तारें