दिल के वीराने को यूँ आबाद कर लेते हैं हम कर भी क्या सकते हैं तुझ को याद कर लेते हैं हम जब बुज़ुर्गों की दुआएँ हो गईं बे-कार सब क़र्ज़-ए-ख़्वाब-आवर से दिल को शाद कर लेते हैं हम तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आबयारी के लिए दावत-ए-शीराज़-ए-अब्र-ओ-बाद कर लेते हैं हम देख कर धब्बे लहू के दस्त-ए-आदम-ज़ाद पर तारी अपने ज़ेहन पर इल्हाद कर लेते हैं हम कौन सुनता है भिकारी की सदाएँ इस लिए कुछ ज़रीफ़ाना लतीफ़े याद कर लेते हैं हम जब पुराना लहजा खो देता है अपनी ताज़गी इक नई तर्ज़-ए-नवा ईजाद कर लेते हैं हम देख कर अहल-ए-क़लम को कुश्ता-ए-आसूदगी ख़ुद को 'वामिक़' फ़र्ज़ इक नक़्क़ाद कर लेते हैं हम