दिल के वीराने को आबाद करूँ या न करूँ जाने वाले तुझे फिर याद करूँ या न करूँ हक़ तो ये है कि मुझे अपने ही दिल ने लूटा कुछ तिरा शिकवा-ए-बेदाद करूँ या न करूँ अक़्ल वाले सभी इल्ज़ाम मुझी को देंगे ज़ख़्म खा खा के भी फ़रियाद करूँ या न करूँ सोचता हूँ मैं अगरचे ये नहीं है मुमकिन ख़ुद को हर क़ैद से आज़ाद करूँ या न करूँ हो न हो अहल-ए-सितम ये भी उड़ा दें कल को इक नया शहर फिर आबाद करूँ या न करूँ ज़ात का ग़म भी तिरा ग़म भी जहाँ का ग़म भी और इक ग़म को भी ईजाद करूँ या न करूँ एक इंसान हूँ और उस पे मसाइब लाखों मेरे अल्लाह तुझे याद करूँ या न करूँ