दिल कि आराइश-ए-आलम का तमाशा देखे गर कभी ख़ुद पे नज़र जाए तो सहरा देखे आँख वो आँख जो हर क़तरे में दरिया देखे तू मगर सामने आ जाए तो फिर क्या देखे ख़्वाब में हो तो ये दिल देखे तिरी दीद के ख़्वाब ख़्वाब से जागे तो इक ख़्वाब सी दुनिया देखे जो समझता है कि खुल जाता है फ़रियाद से बख़्त सू-ए-अफ़्लाक कभी हाथ वो फैला देखे इब्तिला में हैं सभी राह-रव-ए-मंज़िल-ए-शौक़ किस को फ़ुर्सत कि मिरे पाँव का काँटा देखे 'अर्श' अगर लफ़्ज़-ओ-मआ'नी के हो तुम पैग़म्बर एक तस्वीर बना जाओ कि दुनिया देखे