दिल की बर्बादी का रोना ऐ ग़म-ए-नाकाम क्या इस तरह दर्द-ए-मोहब्बत को करें बदनाम क्या दुश्मन-ए-जाँ बन गई ख़ुद-आगही वर्ना भला मेरा रिश्ता रोक सकती शोरिश-ए-अय्याम क्या लज़्ज़त-ए-मिज़्गाँ शुऊर-ए-ग़म का दरमाँ बन गई वर्ना अपना हौसला क्या मय-कशी क्या जाम क्या ख़ुद तो रंगा-रंग तस्वीरें बनाईं आप ने मेरे सर धरते हैं फिर ये आप ही इल्ज़ाम क्या कारवान-ए-दह्र को मंज़िल-ब-मंज़िल देख आए 'नाज़िश'-ए-बदनाम अपनी सुब्ह क्या और शाम क्या