जीवन में धुँदलका ही अगर आए तो अच्छा उस को तो न आना था मगर आए तो अच्छा वैसे तो नज़र आती है हर आँख में नफ़रत वो प्यार के दर्पन में नज़र आए तो अच्छा इक दर्द जो शिद्दत की बुलंदी पे खड़ा है एहसास की सीढ़ी से उतर आए तो अच्छा महलों का नज़ारा तो ख़यालों में बसा है इक बार तसव्वुर में खंडर आए तो अच्छा बरसों से तो वीरान मिरे दिल का नगर है भूली सी कोई याद इधर आए तो अच्छा तुम उस को ख़तावार समझना नहीं 'नाज़िम' गुमराह कोई लौट के घर आए तो अच्छा