दिल की धड़कन भी सदा देने लगी बरसात को याद उन की आ गई कमरे में आधी रात को हर तरफ़ पूरब हो पच्छिम फूल से खिलने लगे शीशा-ओ-साग़र ने कल चूमा था मेरे हात को दुश्मनों के दरमियाँ जब नाम तेरा आ गया भर लिया दामन में जैसे गर्दिश-ए-हालात को मैं समझता था कि अब ये दूरियाँ मिट जाएँगी ठेस पहुँचाता रहा वो हर घड़ी जज़्बात को तेरे जाने से हर इक शय पर उदासी छा गई छोड़ आया गाँव में तेरी हर इक सौग़ात को सोचता रहता हूँ 'माहिर' आइनों के दरमियाँ कर गया है कौन रौशन हिज्र-ओ-ग़म की रात को